रतलाम,10 अप्रैल(खबरबाबा.काम)। राज प्रतिबोधक, पद्मभूषण, सरस्वतीलब्धप्रसाद, परम पूज्य आचार्य श्रीमद्विजय रत्नसुन्दर सूरीश्वरजी महाराज ने प्रवचन के दौरान बुधवार को सवाल किया कि देश अमीरी में छठें और खुशहाली में 122 वें नंबर पर क्यों है? हमारी मानसिकता क्या है? सफलता आती है, तो प्रसन्नता मिलती है, अथवा प्रसन्नता रहे, तो सफलता आती है। यदि अमीरी ही प्रसन्नता देती है, तो सर्वे के मुताबिक देश में अमीरी और खुशहाली के बीच इतना अंतर क्यों है ?
सैलाना वालो की हवेली, मोहन टॉकीज में श्री देवसुर तपागच्छ चारथुई जैन श्रीसंघ, गुजराती उपाश्रय एवं श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी जैन श्वेताम्बर पेढ़ी रतलाम द्वारा आयोजित 11 दिवसीय प्रवचनमाला के दूसरे दिन आचार्यश्री ने जीवन की सफलता क्या? सफलता कि प्रसन्नता? विषय पर प्रेरक मार्गदर्शन दिया। उन्होंने कहा कि आज देश में हर 24 घंटे में एक ग्रेज्युएट सुसाइड कर रहा है। कोई अनपढ़ या गरीब आदमी यह कदम नहीं उठाता है। इसका सीधा कारण सफलता के पीछे भागना है। माता-पिता बच्चों से 90 प्रतिशत की अपेक्षा रखकर सिर्फ उसे सफल देखना चाहते है, उन्हें उसकी प्रसन्नता से कोई वास्ता नहीं होता। सफलता की अंधी दौड़ में बच्चों को जीते जी मारा जा रहा है। कोई व्यक्ति घर में मारल और वेल्यू की बात नहीं करता, जिससे समाज में संस्कार खत्म हो रहे है। उन्होंने कहा कि मल्टीनेशनल कंपनियों ने भारतीय संस्कृति को खत्म करने के लिए वन टू थ्री का प्रोग्राम चला रखा है। इसमें पैकेज पर नौकरी का षडयंत्र रचकर एक व्यक्ति को नौकरी देते है, दो लोगों का वेतन देकर तीन लोगों का काम लेते है। इन कंपनियों में जाने का समय नियत होता है,लेकिन आने का कोई समय नहीं होता। इससे व्यक्ति परिवार से दूर हो रहा है और संबंधों पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
आचार्यश्री ने कहा कि जीवन की सफलता के लिए चार बाते समझना बहुत आवश्यक है। पहला हम बैंक बेलेंस और ब्रेन बेलेंस में किसे महत्व देते है, दूसरा हमारे लिए बिजनेस महत्वपूर्ण है कि बिहेवियर। तीसरा हमारा व्यवहार ब्रेकिंग का है कि बांडिग का और चौथा हमारा नेचर ब्लाइंड है कि ब्राड है। हमारी सफलता प्राथमिकता पर ही निर्भर है। विडंबना है कि अधिकांश लोग अपनी प्राथमिकता तय नहीं कर पाते है। खुशी और सफलता ब्रेन बेलेंस वाले को ही मिलती है। उन्होंने कहा कि जिसे अपनी बुद्धि पर विश्वास होता है, वह व्यक्ति जाब करता है, लेकिन जिसे खुद पर भरोसा होता है, वह बिजनेस करता है। जाब करने वाला अपनी आय को मुठ्ठी बंदकर सीमित रखता है, लेकिन बिजनेस करने वाला उसे दोगुनी-तिगुनी कर सकता है। बैंक बेलेंस से यह जीवन ही नहीं अगला जीवन भी बिगड़ता है। बिजनेस वाले व्यक्ति को बिजनेस से अधिक बिहेवियर पर ध्यान देना आवश्यक है। इसलिए बच्चों को बिजनेस से अधिक बिहेवियर सिखाए, क्योंकि जब किसी की शादी होती है, तो बेटी बिजनेस से अधिक बिहेवियर ही देखेगी। शहर में भी उसी की प्रतिष्ठा ज्यादा होती है, जिसका बिहेवियर अच्छा होता है।आचार्यश्री ने कहा कि बिहेवियर में ब्रेकिंग (तोडऩे) की नहीं अपितु बांडिंग(जोडऩे)की भावना होना भी जरूरी है। अन्यथा करोड़ों रुपए खर्च करके शादी करने वाले भी खुश नहीं रह सकेंगे। बांडिंग की भावना के साथ ब्लाइंड नेचर नहीं चाहिए। उसके साथ ब्राड नेचर जरूरी है। हम जिस प्रकार ट्रेन का सफर अधिक वजन ढोने वाली ब्राडगेज पर करना पसंद करते है, उसी प्रकार जीवन का सफर ब्राड नेचर के साथ होना चाहिए। अन्यथा जीवन में पूर्ण सफलता नहीं मिल पाएगी। प्रवचनमाला का संचालन मुकेश जैन ने किया। इस दौरान श्री संघ अध्यक्ष सुनील ललवानी, उपाध्यक्ष मुकेश जैन,सुनील मूणत, राजेश सुराना, अभय लुनिया, राजेंद्र खाबिया, मोहनलाल कांसवा, विनोद मूणत,पियूष भटेवरा सहित बड़ी संख्या में धर्मालुजन उपस्थित थे। प्रवचनमाला में गुरूवार को आचार्यश्री का विषय मंजिल का निर्णय कौन करेगा? रहेगा।
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