नई दिल्ली, 20अक्टूबर2019/ कभी साइकिल के पंक्चर जोड़ने वाले वरुण बर्नवाल के 32वीं रैंक के UPSC टॉपर बनने की कहानी बेमिसाल है. किस तरह वक्त के कठिन दौर से निकलकर UPSC के मेन्स और इंटरव्यू तक पहुंचे. इंटरव्यू में उनसे जिस तरह से सवाल पूछे गए, उनके जवाब देना सबके लिए आसान नहीं होता. एक मीडिया चैनल से बातचीत में वरुण ने अपने इंटरव्यू और सेलेक्शन होने की पूरी कहानी बयां की.
वरुण ने बताया कि साल 2006 में 21 मार्च को उनकी दसवीं की परीक्षा पूरी हुई थी. तभी 24 मार्च को पिता की डेथ हो गई. पापा साइकिल के पंक्चर की दुकान चलाते थे. अब पिता के आकस्मिक निधन के बाद रिश्तेदार और परिवार वाले पांच भाई बहनों में बड़े होने कारण मेरी तरफ उम्मीद से देख्नने लगे. मैंने भी पापा की तेरहवीं के बाद दुकान खोल दी.
वो कहते हैं कि जब डेढ़ महीने बाद रिजल्ट आया तो मेरा प्रतिशत 89 था. मैं अपने स्कूल का टॉपर होने के साथ साथ गांव में भी टॉपर था. रिजल्ट लेकर आया तो ये फीलिंग आ रही थी कि वाकई ये कितना मुश्किल समय है कि एक तरफ इतना अच्छा रिजल्ट है और दूसरी तरफ आगे पढ़ने का रास्ता बंद है. लेकिन रिजल्ट के बाद हम पांचों भाई बहन, मम्मी और कुछ रिश्तेदार बैठे और बातचीत हुई. मम्मी ने बोला कि दुकान मैं चलाऊंगी, वहीं, बहन ने बोला कि वो ट्यूशन पढ़ाएगी.
वो बताते हैं कि हमारे इलाके में स्थित तारापुर विद्या मंदिर में एडमिशन के लिए 10 हजार की जरूरत थी. फॉर्म भर दिया लेकिन पैसे नहीं थे. 12 बजे एडमिशन था और 11 बजे हम लोग चर्चा कर रहे थे कि कैसे जुगाड़ हो. इतने में पापा का इलाज करने वाले डॉक्टर दुकान पर आए. ये ईश्वर की ही मर्जी थी जो उन्हें यहां भेजा था. उन्होंने आकर बातचीत की और तुरंत 10 हजार रुपये निकालकर दे दिया.
एडमिशन लेने के बाद सुबह अपनी पढ़ाई करने के बाद दोपहर 2 बजे से रात 9 बजे तक ट्यूशन पढ़ाता था. वहां से फ्री होकर 11.30 बजे से रात एक बजे तक पढ़ता था. ये एक बहुत ही कठिन समय था किसी तरह 11वीं 12वी पास किया. मेरे परफार्मेंस को देखते हुए मेरे दोनों साल की फीस मेरे टीचर्स ने भरी.
12वीं के बाद सोचा नहीं था क्या करना है. हम दोस्तों ने तय किया कि अब इंजीनियरिंग करना है. अब जब इंजीनियरिंग में हो गया तो करीब एक लाख रुपये फीस भरनी थी. मां के पास 60 हजार रुपये तक थे, उसमें बहन और मैंने मिलाकर फीस जमा की, एमआईटी में एडमिशन लिया.
फर्स्ट इयर में जब आईएएस बनने का ख्याल आया तो लोगों ने कहा कि ये बहुत टफ है. इसमें 3 लाख लोग प्री देंगे, उसमें 16 हजार मेंन्स देंगे, इसमें से 3000 क्लीयर होंगे. इस 3000 में से 1000 इंटरव्यू में चयनित होंगे. लोगों ने डराया कि तीन लाख में से 80 आईएएस बनते हैं, किस तरह तुम इसे क्लीयर करोगे. ऐसे में वरुण ने कहा कि मुझे उसी 80 में से एक सीट चाहिए.
इसी तैयारी के लिए दिसंबर 2012 में मिली मिलाई नौकरी ज्वाइन नहीं की. जब मां से कहा कि एक साल और तैयारी करूंगा तो मां नाराज हो गई कि छह साल हो गया अब ज्वाइन करना चाहिए. लेकिन बाद में मां मान गई.
यहां भी तैयारी के लिए उनके पास पैसा नहीं था. उन्होंने तैयारी कराने वाले संस्थान को पत्र लिखा तो उन्होंने मुफ्त में पढ़ाया. इस तरह उन्होंने तैयारी करके प्रीलिम्स, मेन्स और इंटरव्यू को क्लीयर किया.
वरुण कहते हैं कि आप जिन चीजों को कंट्रोल कर सकते हैं, उन्हें कंट्रोल करो. जैसे कि पढ़ना आपके कंट्रोल में है तो आप वो करो, हर चीज आप नहीं बदल सकते, वो बाद में कंट्रोल में आती है. वो कहते हैं कि यूपीएससी देखना चाहती है कि आप अलग कैसे हो. वो बताते हैं कि उन्होंने पढ़ाई के साथ साथ कविता लिखना और इंडियन स्टोरी डॉट इन नाम से वेबसाइट चालू की. वो मुंबई की संस्था हेल्प फॉर पीपल एजुकेशन के जरिये जरूरतमंद बच्चों को सिखाने लगे.
जब इंटरव्यू में कहा- कविता सुनाओ
वरुण बताते हैं कि उन्होंने अपनी डिटेल में कविता लिखने की जानकारी दे रखी थी. इंटरव्यूअर ने उनसे कविता सुनाने को कह दिया. इस पर उन्होंने अपनी ये कविता सुनाई. इस कविता की पंक्तियां इंटरव्यू लेने वालों को काफी मनोरंजक और प्रभावी लगीं. ये कविता एक तरह से स्वच्छता अभियान का संदेश भी दे रही है. यहां पढ़ें वो कविता…
जिसके कारण रात गुजारी परिवार ने बिना सोकर
बच्चों ने भी सहा दर्द को जोर जोर से रोकर
जिसका शहर में इलाज कराया, हजारों रुपये खोकर
रोक सकते थे वो बीमारी सिर्फ साबुन से हाथ धोकर.
(साभार-आज तक)
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