रतलाम(ख़बरबाबा. कॉम)।ढीली एवं कमजोर कार्यशैली के चलते रतलाम जिला भाजपा में जंहा आक्रोश बढ़ता जा रहा है वही अनुशासनहीनता भी संगठन में अपने पैर पसारने लगी है,हाल ही में सैलाना नगर परिषद के चुनाव में भाजपा की पराजय इसका ताजा उदाहरण है।जिलाध्यक्ष की नियुक्ति हुए दो माह से अधिक का समय हो चुका है लेकिन असामंजस्य के चलते जिला कार्यकारिणी का गठन नही हो पाया है।
गत विधानसभा चुनाव में जिले की पांचो सीट पर मोदी लहर के चलते भाजपा ने जीत हासिल की थी,ओर उसके छह माह बाद ही हुए लोकसभा चुनाव में रतलाम-झाबुआ संसदीय सीट जीतकर भाजपा ने इतिहास रच डाला था और उसके बाद तो स्थानीय निकायों के चुनावों में भी भाजपा को सफलता हासिल हुई थी,लेकिन तत्कालीन भाजपा सांसद दिलीपसिंह भूरिया के निधन के पश्चात हुए उपचुनाव में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा।संसदीय क्षेत्र में आने वाली सैलाना विधानसभा क्षेत्र जिसे भाजपा ने विधानसभा चुनाव में जीत था वही से लोकसभा चुनाव में भाजपा 45000 वोट से पिछड़ गई और अब हाल ही में हुए सैलाना परिषद के चुनाव में सारी ताकत झोकने के बाद भी भाजपा को पराजय का मुह देखना पड़ा।सैलाना की पराजय का कारण संगठन में समन्वय नही होना एवं लोकल परिस्थितियों को नजरअंदाज करना रही,अनुशासनहीनता की हद यहा तक थी कि पार्टी का उम्मीदवार घोषित होने के बाद भी ब्लॉक अध्यक्ष एवं महामंत्री ने अपनी पत्नियों के फॉर्म भरवाए,मुख्यमंत्री के आदेश के बाद भी फॉर्म वापस नही लिया गया,संगठन ने एक ओर गलत कदम उठाते हुए सैलाना के बाहरी व्यक्ति को चुनाव संचालक बना दिया,गलतिया यह भी नही रुकी ओर स्थानीय नेताओं,कार्यकर्ताओ को अनदेखा कर वार्डो में भी रतलाम के लोगो को प्रभारी बना दिया।यही कारण रहा कि स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं ने मैदानी काम नही किया और भाजपा को पराजय का मुँह देखना पड़ा।
हम रतलाम की बात करे तो यंहा भी पार्टी के अधिकांश जमीनी कार्यकर्ताओ ओर पार्षदों के आक्रोशित तेवर दिखाई देते है,भाजपा के 20 पार्षदों ने अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए साधारण सम्मेलन आहूत की जाने की मांग की है कही सत्ताधारी पार्षद महापौर को अपना निशाना बनाने का कोई मौका नही छोड़ते ओर महापौर है कि अपने पार्टी के पार्षदों ओर कार्यकर्ताओ को तवज्जो नही देती कतिपय नेता नाराज पार्षदों को अपना हथियार बनाकर अपना उल्लू सीधा कर रहे है।निगम अध्यक्ष और महापौर के बीच पटरी नही बैठने की चर्चा अब आम हो चली है,गुटबाजी के चलते निगम अध्यक्ष की भूमिका नगण्य दिखाई दे रही है,महापौर के इर्द गिर्द पार्टी कार्यकर्ताओं के बजाए ऐसे लोग मंडराते नजर आते है जिनका पार्टी से कोई लेना देना नही है।नगरनिगम के राजनीतिक गलियारों में सत्ताधारी पार्षद यह कहते नजर आते है कि आयुक्त महापौर की नही सुनते ओर महापौर पार्षदों की नही सुनती।मंडल अध्यक्षो की यह स्थिति है कि पुलिस प्रशासन में एक हवलदार ओहदे वाला व्यक्ति उनकी नही सुनता ओर सरकारी दफ्तरों में अधिकारी तो क्या बाबू भी उन्हें तवज्जो नही देते।भाजपा के जमीनी कार्यकर्ता हताश भरी बाते करते हुए कहते है के प्रभारी मंत्री भी प्रशासनिक अधिकारियों के आगे असहाय नजर आते है,योजना समिति की बैठक में स्वस्थ,शिक्षा,राजस्व में भ्रष्टाचार,एवं बिजली के अनाब शनाब बिलो की शिकायतों पर गंभीरता से विचार नही किया जाता।ऐसी स्थिति में भाजपा के कार्यकर्ताओं से पार्टी यदि आने वाले चुनावो में सौ प्रतिशत रिजल्ट की उम्मीद करें तो यह कैसे संभव होगा,कुल मिलाकर नीचे से ऊपर तक भाजपा का राज होने के बावजूद अंदर ही अंदर आक्रोश पनप रहा है जो अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में प्रत्यक्ष रूप से सामने आ सकता है।
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