रतलाम,6मई(खबरबाबा.काम)। जुल्म, नाइंसाफी ,अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना सिख पंथ के गुरुओं ने यह शिक्षा दी है।आक्रांताओ ने सिख पंथ को खत्म करने की अनेकों बार कोशिश की, महिलाओं, पुरुषों, बुजुर्गों को यातनाएं दी। यहां तक की बंदा बहादुर के 4 वर्षीय बेटे को कत्ल कर उसका सिर उनकी गोद में रख दिया तो भी बंदा बहादुर ने अपना धर्म नहीं छोड़ा।
यह बात श्री गुरु तेग बहादुर शैक्षणिक विकास समिति रतलाम द्वारा सिख पंथ के तीसरे गुरु अमर दास जी के प्रकाश उत्सव के अवसर पर बड़बड़ रोड स्थित खालसा सभागृह में आयोजित 18वीं सदी में सिखों की शहादत एवं राष्ट्र निर्माण में योगदान विषय पर आयोजित व्याख्यान के दौरान प्रसिद्ध इतिहासकार लेखक एवं चिंतक डॉक्टर सुखप्रीत सिंह उधोके ने कहीं।
उन्होंने कहा कि सिख पंथ के हजारों लोगों ने शहादत दे दी किंतु जबरन धर्म परिवर्तन नहीं किया तथा इस्लाम कुबूल नहीं किया। उन्होंने कहा कि महाराजा रणजीत सिंह जी ने 40 साल तक पंजाब में शासन किया उनके शासन में कभी भी सांप्रदायिक वैमनस्य नहीं फैला तथा न हीं कोई दंगे हुए। उन्होंने जितनी भी रियासते फतेह की, दुश्मन पर विजय पाई ।किंतु किसी को भी बदले में सजा-ए-मौत नहीं दी।जब भी वे किसी रियासत पर कब्जा करते थे तो उसके राजा को जीवन यापन के लिए जागीर देते थे।ऐसा स्वर्णिम इतिहास सिख पंथ का रहा है।
इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विधायक चेतन्य काश्यप ने कहा कि सिख पंथ के सभी गुरुओं ने एक विशिष्ट छाप छोड़ी है। उन्होंने कहा कि देश में मुस्लिम आक्रमण के कारण विकृतियां पैदा हुई थी समाज और संस्कृति की रक्षा के लिए सिख पंथ का बलिदान भुलाया नहीं जा सकता। सिखों ने राष्ट्र के लिए अनेकों बार शहादत दी है। उन्होंने सामाजिक बुराइयों को खत्म किया है।
कार्यक्रम के प्रारंभ में बलविंदर गुरूदत्ता ने शब्द कीर्तन प्रस्तुत किया। अतिथियों का स्वागत श्री गुरु तेग बहादुर शैक्षणिक विकास समिति अध्यक्ष सरदार गुरनाम सिंह ,उपाध्यक्ष हरजीत चावला, सचिव अजीत छाबड़ा, कोषाध्यक्ष देवेंद्र वाधवा, प्रवक्ता सुरेंद्र सिंह भामरा ,एकेडमी प्राचार्य डॉ रेखा शास्त्री, मेघा वैष्णव, सरला माहेश्वरी ,मनीषा ठक्कर आदि ने किया। स्वागत उद्बोधन समिति अध्यक्ष सरदार गुरनाम सिंह ने दिया। आभार प्रदर्शन सचिव अजीत छाबड़ा ने माना। इस अवसर पर अनेकों नागरिक मौजूद थे।