26अप्रैल2023। विश्व ऑटिज़्म जागरूकता दिवस प्रतिवर्ष 2 अप्रैल संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों द्वारा मनाया जाता है एवं संपूर्ण अप्रैल माह को भारत में राष्ट्रीय ऑटिज्म जागरूकता माह के रूप में मनाया जाता है। दुनिया भर में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर से पीड़ित लोगों के बारे में अपने नागरिकों के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए यह दिन मनाया जाता है। विश्व ऑटिज़्म जागरूकता दिवस का आयोजन संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक संचार विभाग और संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग द्वारा ऑटिस्टिक सेल्फ एडवोकेसी नेटवर्क ग्लोबल ऑटिज्म प्रोजेक्ट और स्पेशलिस्टर्न फाउंडेशन सहित नागरिक समाज भागीदारों के समर्थन से किया जाता है।
ऑटिज़्म को मेडिकल भाषा में ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसॉर्डर कहते हैं। यह एक विकास संबंधी गड़बड़ी है जिससे पीड़ित व्यक्ति को बातचीत करने में, पढ़ने-लिखने में और समाज में मेलजोल बनाने में परेशानियां आती हैं। ऑटिज़्म एक ऐसी स्थिति है जिससे पीड़ित व्यक्ति का दिमाग अन्य लोगों के दिमाग की तुलना में अलग तरीके से काम करता है। वहीं, ऑटिज़्म से पीड़ित लोग भी एक-दूसरे से अलग होते हैं। यानि कि आटिज्म के अलग-अलग मरीजों को अलग-अलग लक्षण महसूस हो सकते हैं। हालांकि इस बीमारी के बारे में अभी तक बहुत ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है और न ही वर्तमान में इसका कोई कम्प्लीट इलाज है। वैसे तो इस बीमारी से पीड़ित लोग नौकरी करने, परिवार और दोस्तों के साथ मेल-मिलाप करने में सक्षम होते हैं, लेकिन कई बार उन्हें इसके लिए दूसरों की मदद लेनी पड़ती है।
जहां कुछ ऑटिस्टिक लोगों को पढ़ने-लिखने में परेशानी होती है तो वहीं ऑटिज्म के कुछ मरीज या तो पढ़ने लिखने में बहुत तेज होते हैं या सामान्य होते हैं। परिवार, टीचर्स या दोस्तों के सहयोग से ये लोग नई स्किल्स सीखने में भी सक्षम होते हैं और बिना किसी सहारे के काम कर पाते हैं। कुछ स्टडीज़ में ऐसा देखा गया है कि डायग्नोसिस और इंटरवेंशन ट्रीटमेंट सर्विसेज़ की जल्द मदद से ऑटिस्टिक लोगों को सामाजिक व्यवहार और नयी स्किल्स सीखने में मदद मिलती है जिससे, वे अपना जीवन बेहतर तरीके से जी पाते हैं।
ऑटिज्म के संकेत एवं लक्षण:
अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के अनुसार एक साल के होने से पहले ही बच्चे में ऑटिज्म के संकेत मिलने शुरू हो सकते हैं। ज्यादा साफ संकेत दो या तीन साल की उम्र से पहले ही दिखने लग जाते हैं। ऑटिज्म तीन चीजों को प्रभावित करता है – सोशल स्किल्स, कम्यूनिकेशन स्किल्स और बिहेवियर स्किल्स।
ऑटिज्म से ग्रस्त तीन साल के बच्चे में सोशल स्किल्स की कमी देखी जाती है। इसमें बच्चा अपना नाम सुनकर प्रतिक्रिया नहीं देता, आंखों में आंखें डालकर बात नहीं करता, अपनी चीजों को दूसरों से शेयर नहीं करता, अकेले खेलता है, उसे दूसरों से बात करना पसंद नहीं है, फिजीकल कॉन्टैक्ट से बचता है, चेहरे पर अजीबो-गरीब हाव-भाव होना और अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पाता है।
लैंग्वेज स्किल्स में कमी:
तीन साल के बच्चे में लैंग्वेज और कम्यूनिकेशन स्किस में ऑटिज्म के निम्न संकेत दिखाई दे सकते हैं :
-बोलना देरी से सीखना
-किसी शब्द या वाक्य को दोहराना
-सवालों के गलत जवाब देना
-दूसरों की बात को दोहराना
-पसंद की चीजों को प्वाइंट ना करना
-गुड बाय कहना या हाथ हिलाने जैसी कोई प्रतिक्रिया ना देना
बिहेवरियल स्किल्स में कमी:
ऑटिज्म से ग्रस्त होने पर तीन साल के बच्चे में निम्न संकेत मिल सकते हैं :
-खिलौनों और चीजों को काफी संभालकर रखना।
-रोजमर्रा की जिंदगी में छोटा-सा बदलाव करने पर भी दुखी हो जाना।
-बार-बार एक ही चीज करना।
-किसी एक ही चीज या खिलौने से खेलना।
-गुस्सा दिखाना।
-खुद को नुकसान पहुंचाना।
-कुछ परिस्थितियों में डर ना लगना।
-समय पर ना सोना और ना
खाने का सही समय होना।
ऑटिज़्म का इलाज:
ऑटिज़्म के उपचार का लक्ष्य इसके लक्षणों को कम करके और विकास और सीखने में सहायता करके मरीज के कार्य करने की क्षमता को अधिकतम करना है। इससे सामाजिकता, संचार, कार्यात्मक और व्यवहार कौशल सीखने में मदद कर सकता है।
स्पीच थेरेपी के फायदे में आटिज्म :
अपनी भावनाओ की शब्दों में बताने के लिए।
यह समझने के लिए की सामने खड़ा व्यक्ति आपसे क्या कहना चाहता है।
दोस्तों के बीच होने वाली बातो के एक दूसरे से समझने के लिए ।
यह समझने के लिए की आपको अपनी बात किसी अन्य को कैसे समझनी है।
शब्दों को बोलने एवं सेंटेंस बनाने मे।
ऑक्यूपेशनल थेरेपी (ओटी) क्या है?
ऑक्यूपेशनल थेरेपी स्वास्थ्य देखभाल का एक क्षेत्र है जो उन लोगों का समग्र रूप से इलाज करता है जिनके पास चोट, विकलांगता या ऑटिज़्म सहित अन्य स्थितियां हैं। इस अभ्यास में, व्यावसायिक चिकित्सक (OTs) रोगियों को विकसित करने, ठीक करने या सार्थक दैनिक गतिविधियों में संलग्न होने की अपनी क्षमता बनाए रखने में मदद करते हैं, जिसमें दूसरों के साथ उचित रूप से संवाद करना शामिल है।
OTs रोगी की व्यक्तिगत जरूरतों को समझने के लिए रोगी और परिवार के साथ सीधे संवाद करके प्रक्रिया शुरू करते हैं। वे उचित लक्ष्य और उपचार योजना विकसित करने से पहले रोगी की शारीरिक, संवेदी, भावनात्मक और संज्ञानात्मक क्षमताओं का आकलन करते हैं।
ऑक्यूपेशनल थेरेपी रोल इन आटिज्म :
– सेंसरी इंटीग्रेशन थेरेपी एवं सेंसरी बेस्ड स्ट्रेटेजी का उपयोग करना।
-मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण पर जोर देना।
-भावनात्मक विकास और स्व-विनियमन रणनीतियों और कार्यक्रमों को लागू करना।
-सहकर्मी समूहों, सामाजिक -भागीदारी और खेल गतिविधियों का आयोजन।
– मांसपेशियों के विकास पर कार्य करना।
-सकारात्मक व्यवहार का समर्थन करने के लिए संज्ञानात्मक व्यवहार दृष्टिकोण का उपयोग करना।
-व्यावसायिक चिकित्सक बच्चों को आत्म निर्भर करने में मदद करते हैं।
– कपडे पहनने में और कपड़ो को जमाने में साथ ही दैनिक जीवन की गतिविधि में भी मदद करते हे।
-ऑटिज्म में संवेदी समस्या होने के कारण व्यावसायिक चिकित्सक इसे हल करने में मदद करते हैं।
-ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट बच्चो को उनके पढाई लिखाई में होने वाली समस्याओ को हल करने भी मदद करते है।
-थेरेपिस्ट मदद करते हे एडल्ट आटिज्म में मनी मैनेजमेंट सिखने ,हैंडलिंग वर्क सिचुएशन ,जॉब रोल या अपने काम को बेहतर तरीके से करने मे।