रतलाम,15अप्रैल(खबरबाबा.काम)। कलेक्टर राजेश बाथम ने वर्ष 1956- 57 के रिकॉर्ड में दर्ज शासकीय भूमियों को लेकर तहसीलदार के माध्यम से सभी पटवारियों से रिपोर्ट मांगी है। इन भूमियों के निजी मद में चढ़ने और स्वीकृत एवं अस्वीकृत नामांतरण को लेकर भी पूरी जानकारी तलब की गई है।
प्रशासनिक सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार वर्ष 1956-57 के रिकॉर्ड में जो भूमि शासकीय रूप से दर्ज है उनमें से कई निजी नाम पर दर्ज हो चुकी है। इन भूमियों के विक्रय पत्र के नामांतरण को लेकर कई शिकायतें जनसुनवाई में हो चुकी है। अब कलेक्टर राजेश बाथम ने 1956-57 में दर्ज शासकीय भूमि को लेकर पूरी जानकारी मांगी है।
प्रशासनिक सूत्र बताते हैं कि 1956-57 में जो भूमि शासकीय एवं अनुसूचित जनजाति के नाम पर दर्ज थी उनके सर्वे नंबर सहित 1 अप्रैल 2022 से 31 मार्च 2024 तक स्वीकृत नामांतरण की जानकारी मांगी गई है।
इसके अलावा इन भूमियों के अस्वीकृत नामांतरण को लेकर भी पूरी जानकारी चाही गई है।
तहसीलदार के माध्यम से पटवारी से यह भी पूछा गया है कि 1956-57 के रिकॉर्ड में ग्रामवार कितनी शासकीय भूमि थी। कितनी अनुसूचित जनजाति के नाम पर दर्ज थी, और अब कितनी शेष है।
इनमें से कितनी भूमि निजी नाम पर दर्ज हुई है, कितनी बार विक्रय हुई है तथा उनकी वर्तमान स्थिति क्या है यह भी जानकारी चाही गई है। इस अवधी में यदि शासन ने इन जमीनों पर कोई पट्टा आवंटन किया है तो उसकी भी जानकारी चाही गई है।
नामांतरण में 1956-57 के रिकॉर्ड की अनिवार्यता
पिछले 3 सालों से जमीनों के नामांतरण में वर्ष 1956- 57 के राजस्व रिकॉर्ड की अनिवार्यता कर दी गई है। तत्कालीन कलेक्टर कुमार पुरुषोत्तम ने इस संबंध में निर्देश जारी किए थे कि यदि कोई जमीन 1956- 57 के रिकॉर्ड में शासकीय रूप में दर्ज है और उसके निजी नाम से दर्ज होने को लेकर कोई विधिवत दस्तावेज उपलब्ध नहीं है, तो उनका नामांकन नहीं किया जाए। इसके बाद से जमीनों के नामांतरण में 1956 – 57 के रिकॉर्ड को अनिवार्य कर दिया गया है। इस नियम के बाद से कई जमीनों के नामांतरण रुके हुए हैं। हालांकि सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कुछ मामलों में नामांतरण हुए भी है लेकिन वह किस आधार पर किए है इसकी जानकारी नहीं मिल पाई है। इस नियम को हटवाने के लिए जिले के जनप्रतिनिधि से लेकर जमीनों के कारोबार से जुड़े कई लोग भोपाल तक भी आवाज उठा चुके हैं। अब रतलाम कलेक्टर द्वारा इस मामले को लेकर मांगी गई रिपोर्ट के बाद नामांतरण में 1956-57 के रिकॉर्ड की अनिवार्यता के नियम को लेकर प्रापर्टी बाजार में कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं।