
जबलपुर, 27मई (खबरबाबा.काम)। मध्यप्रदेश के जबलपुर से बड़ी खबर सामने आई है, जहां प्रशासन ने 11 नामी स्कूल के संचालकों और प्रिंसिपल के खिलाफ मामला दर्ज किया है। मनमाने तरीके से फीस वृद्धि और पुस्तकों के प्रकाशन एवं विक्रय को लेकर कलेक्टर ने यह एक्शन लिया है। सोमवार सुबह 5 बजे से इस मामले में गिरफ्तारियां भी शुरू हुई है। बताया जा रहा है कि कलेक्टर की जांच में 100 करोड़ की गड़बड़ी उजागर हुई है।
ऐसा पहली बार हुआ जबकिसी IAS ने निजी स्कूलों की मनमानी और कमीशनखोरी के पूरे सिंडीकेट का पर्दाफाश किया है। मध्य प्रदेश के जबलपुर कलेक्टर दीपक सक्सेना ने इस पूरे मामले का न सिर्फ खुलासा किया, बल्कि 11 स्कूल संचालकों पर एफआईआर दर्ज कर 27 मई की अलसुबह गिरफ्तारी की कार्रवाई भी शुरू की। इस पूरे खुलासे को सुन आप भी चौंक जाएंगे।
3 महीने से चल रही थी जांच
आपको बता दें कि स्कूलों में फीस वृद्धि और किताब प्रकाशन को लेकर करीब 3 माहीने से स्कूलों की जांच चल रही थी। कलेक्टर को उनकी खुली सुनवाई में निजी स्कूलों के खिलाफ 300 के लगभग शिकायते मिली थी। शिकायतों की जांच के लिए कलेक्टर ने एक जांच कमेटी बनाई थी। जांच के दौरान मामले में स्कूल संचालक और प्रकाशक के बीच सांठगांठ सामने आई।
मनमाने तरीके से बढाई फीस
स्कूलों पर आरोप लगाया गया था कि इन्होंने नियम विरुद्ध तरीके से स्कूलों की फीस बढ़ा दी थी। मध्य प्रदेश में 2017 में निजी स्कूलों के संचालन के लिए एक अधिनियम पारित किया गया था इसके तहत कोई भी स्कूल बिना सुविधा बढ़ाये 10% तक से ज्यादा फीस नहीं बढ़ाई जा सकती वहीं दूसरी तरफ इससे अधिक फीस बढ़ाने पर जिला प्रशासन की अनुमति की जरूरत होती है। इस मामले में जिला प्रशासन ने जांच की और जबलपुर के इन स्कूलों ने बिना नियम के अपनी फीस में बढ़ोतरी कर दी। जबलपुर जिला प्रशासन ने क्राइम ब्रांच की मदद लेकर जबलपुर के इन स्कूलों के खिलाफ धोखाधड़ी की धारा 420 और आईएसबीएन नंबर के कानून का उल्लंघन करने के आप में धारा 471 के तहत मामला दर्ज किया गया है।
जिला प्रशासन ने जांच में पाया हैं कि अभी तक इन स्कूलों ने 81 करोड़ 30 लाख रुपए 21000 बच्चों से ज्यादा फीस के तहत वसूल की है। जबलपुर कलेक्टर दीपक कुमार सक्सेना के मुताबिक अनुमानित 1037 निजी स्कूल में जांच की गई तो 240 करोड रुपए की अतिरिक्त फीस वसूली गई हैं।
स्कूल में चलने वाली 90% किताबें फर्जी
जबलपुर कलेक्टर दीपक सक्सेना ने खुलासा किया कि स्कूलों में चलने वाली 90 प्रतिशत और कई मामलों में तो 100% किताबें तक फर्जी है। दीपक सक्सेना ने अपनी जांच में पाया कि निजी स्कूलों में चल रही किताबों पर जरुरी ISBN नंबर है ही नहीं। इन किताबों पर जो ISBN नंबर दर्ज किये गए हैं, वे सब फर्जी हैं।
ISBN नंबर क्यों होता है जरुरी
आईएसबीएन एक अंतर्राष्ट्रीय मानक पुस्तक संख्या है। ये 13 अंका का एक कोड है। जिसमें पुस्तक से संबंधित हर जानकारी जैसे प्रकाशक, विक्रेता, एमआरपी की जानकारी दर्ज होती है। ISBN नंबर होने से पुस्तक का अधिकतम विक्रय मूल्य फिक्स हो जाता है। ऐसे में इसमें कमीशनखोरी की गुंजाइश नहीं रहती। यही कारण है कि स्कूलों में चल रही अधिकांश पुस्तकें बिना या गलत ISBN नंबर के फर्जी चल रही हैं।
कमीशन कमाने बच्चों पर डाल रहे बोझ
जबलपुर कलेक्टर की जांच में सामने आया कि बच्चों के कंधो पर ये बोझ कमीशनखोरी के चक्कर में जानबूझकर डाला जा रहा है। बच्चों का सुनहरा भविष्य दिखाकर पेरेंट्स को अतिरिक्त पुस्तकों को खरीदने के लिए कनवेंश किया जाता है। नतीजा बच्चों पर पढ़ाई के साथ साथ पुस्तकों का बोझ भी बढ़ रहा है।
25 मार्च को सार्वजनिक करने वाली बुक का आर्डर दिसंबर में दिया
जबलपुर कलेक्टर दीपक सक्सेना ने मामले का खुलासा करते हुए समझाया कि किस तरह से एक सिंडिकेट की तरह ये लोग काम करते हैं। शैक्षणिक सत्र शुरु होने से पहले प्राइवेट स्कूल नये सेशन के लिए 25 मार्च को पुस्तकों को सार्वजनिक करते हैं। जबकि इसका आर्डर दिसंबर में ही पब्लिकेशन को चला जाता है। इसका मतलब ये मोनोपॉली 4 महीने पहले से शुरु हो जाती है और सिर्फ दिखावे के लिए नया सत्र शुरु होने से पहले पुस्तकों को सार्वजनिक करने की रस्म अदायगी की जाती है।
बिना कारण हर साल बदल रहे किताबें
बच्चे और पेरेंट्स स्कूल की पुरानी किताबों को एक्सचेंज न कर लें इसलिए प्राइवेट स्कूल हर साल ही किताबें बदल देते हैं। हालांकि इसके पीछे कहीं कोई कारण नहीं होता। स्कूल संचालकों के पास किताबें बदलने या नहीं बदलने के पीछे कोई कारण ही नहीं है और न ही कोई एक्सपर्ट कमेटी जिसकी सलाह पर हर साल किताबें बदली जा रही हैं।