रतलाम, 19 अगस्त(खबरबाबा.काम)। श्री साधुमार्गी जैन श्री संघ का संयम साधना महोत्सव नित नए किर्तीमान रच रहा है। इसमें दीक्षा दानेश्वरी, आचार्य प्रवर 1008 श्री रामलालजी म.सा.की प्रेरणा से कई लोग जीवन परिवर्तन के मार्ग पर अग्रसर हो रहे है। रविवार को पैतृक संपत्ति संबंधी कोई विवाद नहीं करने की प्रेरणा मिलने पर सैकड़ों गुरूभक्तों ने अनुकरणीय कदम उठाया। उन्होंने आचार्यश्री ने जीवन में कभी पैतृक संपत्ति का विवाद नहीं करने का संकल्प ले लिया। पुरूषों के बाद महिलाओं ने यह कदम उठाया।
आचार्यश्री रामेश की अमृत देशना श्रावक-श्राविकाओं के मन-मस्तिष्क पर सीधा प्रभाव डाल रही है। उनकी प्रेरणा से संयम साधना महोत्सव के दौरान एक तरफ जहां त्याग, तपस्या का ठाठ लगा हुआ है, वहीं संसार, समाज, परिवार और स्वंय की भलाई के कई कदम उठाए जा रहे है। आचार्यश्री ने आगामी 23 अगस्त को 50 से अधिक मासक्षमण तपस्याओं की अनुमोदना के लिए महोत्सव के बजाए अधिक से अधिक त्याग-तपस्या करने की प्रेरणा दी। इस पर समाजजनों ने 23 अगस्त को 1200 से अधिक उपवास और इससे पूर्व 21 से 23 अगस्त तक 120 से अधिक तेले (तीन उपवास)की तपस्या का लक्ष्य तय कर तैयारियां शुरू कर दी है। रविवार को तपस्वी महेंद्र-यशवंत कटारिया ने 30 उपवास का प्रत्याख्यान लिया। उनके सहित अब तक मासक्षमण की 19 तपस्याएं पूर्ण हो गई है। कई तपस्वी अन्य तपस्याएं भी कर रहे है।
व्याख्यान में आचार्यश्री ने संयम और सामायिक का महत्व बताया। उन्होंने कहा कि जब तक गहराई में नहीं उतरो, तब तक संयम और सामायिक की कीमत मालूम नहीं पड़ेगी। सामायिक की कीमत पुण्या श्रावक ने समझी और अपने जीवन को धन्य बना लिया था। मनुष्य जब तक बाहर की आवाज सुनता है, तब तक उसे भीतर की आवाज सुनाई नहीं देती है। संयम के लिए जीवन का नियमन करना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि नियमन के बिना जीवन में विषमता की विभीषिका बढ़ती जाती है। खुद पर नियंत्रण रखने वाला हमेशा सुखी रहता है, इसलिए स्व अनुशासन से जिए और स्व नियंत्रण कर जीवन को आनंदमय बनाएं।
श्री जयेशमुनिजी म.सा.ने कहा कि क्षण-क्षण को जानने वाला ज्ञानी होता है। समय की कीमत जो नहीं करता, समय भी उसकी कीमत नहीं करता है। मनमानी करने वाले को सदैव पछताना पड़ता है। साध्वी श्री सुरक्षाश्री जी म.सा.एवं श्री सुविरागश्री जी म.सा.ने संथारा गीत प्रस्तुत किया। प्रीति मूणत एवं प्रेमलता पिरोदिया ने भी संबोधित किया। संचालन सुशील गौरेचा व महेश नाहटा ने किया।
भरत, लक्ष्मण चाहते हो, तो राम बनना होगा
पैतृक संपत्ति को लेकर आचार्यश्री ने कहा कि बेटा सपूत हो अथवा कपूत, दोनो ही स्थितियों में उसके लिए संपत्ति कमाने की जरूरत नहीं होती। पिता की कमाई भाई-भाई को दुश्मन बनाती है। इसमें भाई को भाई से प्रेम करना चाहिए कि संपत्ति से, यह कोई नहीं सोचता। रामायण में भाई की दुर्लभता बताई गई है। इससे पता चलता है कि राम होगा तो भरत होगा। आजकल सबकों भरत और लक्ष्मण जैसे भाई की अपेक्षा रहती है, लेकिन वे यह भूल जाते है कि इसके लिए खुद को भी राम बनना पड़ेगा। तेरा-मेरा करने से कभी भरत जैसे भाई पैदा नहीं होंगे। संपत्ति से अधिक भाई को महत्व देंगे, तो ही राम, भरत तथा लक्ष्मण जैसे भाईयों का प्रेम देखने को मिलेगा।
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