रतलाम,20अगस्त(खबरबाबा.काम) । अटलजी के बारे में क्या कहूँ , वे ज्ञान के समुद्र और स्वयं शब्दकोश थे । मेरा भी जन्म ग्वालियर में हुआ है । साहित्य से जुड़ाव होने और साहित्य परिषद की गतिविधियों में लगे होने से अटलजी से मिलना होता था । राजनीति हो या साहित्य या फिर धर्म वे हमेशा मार्गदर्शक की भूमिका में ही नजर आते रहे है । उनकी रचनाओं में भी तीखे प्रहार होते थे जो देश को सर्वोपरि रख कर शब्दो से बहुत कुछ कहते थे ।
उक्त बात व्योवर्द्व साहित्यकार “सुरेश आनन्द” ने “ख़बरबाब ” से चर्चा करते हुए कही । दर्जनों मौलिक पुस्तको के रचयिता साहित्यकार सुरेश आनन्द बताते है अटलजी ने अपनी समस्याएं , शायद किसी से सांझा नही की होगी , लेकिन दुसरो की समस्याओं के लिये स्वयं जूझना उनकी आदत में शुमार होता था । प्रधानमंत्री पद जैसे शिखर पर पहुंचने पर भी आम आदमी बन कर जिये , उनका रचनाधर्म लगातार चलता रहा । हर पत्र का वे उत्तर देते थे , उन्होंने कई बार मुझे पत्र भेजे लेकिन प्रधानमंत्री पद के लेटर हेड का इस्तेमाल करने से हमेशा बचते रहे , पत्र पर नीजि सहायक के नही वे स्वयं हस्ताक्षर करते थे । पद से बड़ा उनका दृष्टिकोण , सज्जनता और संवेदनाएं थी । हर पत्र में वे साहित्य को लेकर मार्गदर्शन देते थे । मेरी ” सरहद के आदमी ” और ” चेहरे पर चहरे ” प्रकाशित पुस्तक पर मुझे 3 मार्च 2005 को पत्र भेजा था , इस पत्र में भी उन्होंने मार्गदर्शन देते हुए लिखा था साहित्य साधना सदियों से कठिन मार्ग रहा है । सरस्वती और लक्ष्मी का मेल मुश्किल है । मेरी कईं प्रकाशित पुस्तको पर वे पत्र भेजना नही भूलते थे । ऐसे कुशल मार्गदर्शक कविह्र्दय का निधन ऐसी क्षति है जिसे मै तो शब्दो मे भी बयां नही कर सकता हूँ । अब तो शब्द भी रूढ़ गए है ।
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