रतलाम,14 अप्रैल। आचार्य प्रवर श्री उमेशमुनिजी के सुशिष्य प्रवर्तक श्री जिनेंद्रमुनिजी म.सा.के मुखारविंद से 16 अप्रैल को दीक्षा ले रहे मुमुक्षु दंपत्ति का रविवार को श्री धर्मदास जैन श्री संघ ने जय-जयकार के बीच अभिनंदन किया। इससे पूर्व हनुमान रूंडी से मुमुक्षु अमृत मूणत एवं किरण मूणत की शोभायात्रा भी निकाली गई। इसमें और बहुमान समारोह में शामिल होकर समाजजनों ने दीक्षा महोत्सव की अनुमोदना की।
मुमुक्षु दंपत्ति नागरवास निवासी अमृत मूणत एवं किरण मूणत को प्रवर्तकश्री 16 अप्रैल को सुबह गोपाल गौशाला कालोनी स्थित श्री सौभाज्य अणु वाटिका में जैन भागवती दीक्षा प्रदान करेंगे। श्री धर्मदास जैन श्री संघ ने नोलाईपुरा स्थानक में दीक्षार्थीगण का बहुमान किया। इससे पूर्व हनुमान रूंडी से भव्य शोभायात्रा निकली, जो चौमुखीपुल, घांस बाजार, माणक चौक, न्यू क्लाथ मार्केट से गणेश देवरी होते हुए स्थानक पहुंचकर बहुमान समारोह में परिवर्तित हो गई। शोभायात्रा में आगे-आगे बैंड बाजे और उनके पीछे घुडसवार धर्मध्वजा लिए हुए चल रहे थे। मुमुक्षु दंपत्ति रथ में सवार थे। स्थानक में श्री संघ की और से अध्यक्ष अरविंद मेहता, महामंत्री सुशील गादिया, सचिव दिलीप चाणोदिया, कोषाध्यक्ष माणकलाल कटकानी, सहसचिव मनोज मोदी एवं कार्यकारिणी सदस्यों सहित समाजजनों ने जय-जयकार कर मुमुक्षु दंपत्ति का अभिनंदन किया। अणु मित्र मंडल, अणुश्री श्राविका मंडल, अणुश्री बालिका मंडल एवं अणु बाल मंडल ने भी मुमुक्षु दंपत्ति का सम्मान किया। इस मौके पर मुमुक्षु दंपत्ति के पुत्र सौरभ मूणत एवं मिलिन गांधी ने भावपूर्ण विचार रखे। संचालन अणु मित्र मंडल के महामंत्री राजेश कोठारी ने किया। इस दौरान श्री धर्मदास जैन गण परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष शांतिलाल भंडारी सहित अन्य पदाधिकारीगण एवं बड़ी संख्या में समाजजन उपस्थित थे।
मुमुक्षु का बहुमान जिनशासन की अनुमोदना- प्रवर्तकश्री
नोलाईपुरा स्थित श्री धर्मदासजैन मित्र मंडल स्थानक में बहुमान समारोह से पूर्व प्रवर्तकश्री ने प्रवचन में मुमुक्षुगण के बहुमान को जिनशासन की अनुमोदना बताया। उन्होंने कहा कि संसार के प्रति उदासीन और मोक्ष मार्ग पर अग्रसर होने वाली आत्माओं का बहुमान करते समय अपने जीवन में भी ऐसे अवसर की अपेक्षा करना जिनशासन की अनुमोदना करना है। इससे यह भी दर्शित होता है कि आत्म कल्याण के लिए भगवान द्वारा बताया गया मार्ग सही है। रतलाम में श्री गिरीशमुनिजी की दीक्षा के बाद करीब 8 वर्षों बाद दीक्षा का प्रसंग निर्मित हुआ है। दरअसल तप और संयम जिसे प्रिय होता है, दीक्षा ही उसके लिए सफलता का पर्याय बनती है। प्रवर्तकश्री ने इस मौके पर पूज्य प्रवर्तक श्री ताराचंदजी म.सा.के पुण्य स्मृति दिवस का स्मरण कराते हुए उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर भी प्रकाश डाला। इससे पूर्व श्री गिरीशमुनिजी म.सा.ने मुमुक्षु दंपत्ति के दीक्षा प्रसंग की अनुमोदना द्रव्यों के बजाए भावों से करने की प्रेरणा दी। उन्होंने इस मौके पर उपस्थित समाजजनों को परिवार में दीक्षा के भाव होने पर किसी सदस्य को नहीं रोकने एवं स्वयं की दीक्षा का प्रसंग आने तक प्रिय वस्तु का त्याग करने के संकल्प भी दिलाए।
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