धर्म समाचार,26दिसम्बर(खबरबाबा.काम)। सांसारिक मोहमाया को त्याग कर 28 साल के इंजीनियर ने वैराग्य की राह पकड़ ली है। 28 वर्षीय युवा प्रांशुक कांठेड़ मूल रूप से देवास जिले के रहने वाले हैं। 26 दिसंबर को प्रांशुक आचार्य भगवंत उमेशमुनिजी म.सा. ‘अणु’ के दिव्य आशीर्वाद से धर्मदास गणनायक, प्रवर्तकश्री जिनेन्द्रमुनिजी म.सा. से दीक्षा अंगीकार करेंगे। इसके लिए वह अमेरिका से सवा करोड़ 1.25 करोड़ रुपये की सालाना नौकरी छोड़कर जनवरी 2021 में वापस भारत आ गए थे। अब दीक्षा ग्रहण का वक्त आ गया है। परिवार में रस्म निभाए जा रहे हैं। प्रांशुक कांठेड़ के साथ रतलाम के मुमुक्षु पवन भाई कांसवा और थांदला के प्रियांश लोढ़ा भी दीक्षा लेंगे।
28 साल के युवा प्रांशुक कांठेड़ बचपन से ही संत बनने की इच्छा थी। दृढ़ इच्छा से वह जैन मुनि बनने की दीक्षा ले रहे हैं। 28 वर्षीय प्रांशुक कांठेड़ वर्ष 2016 से जनवरी 2021 तक करीब 4.5 साल USA में रहे। पढ़ाई के बाद प्रांशुक ने USA में ही करीब तीन साल तक नौकरी की है। प्रांशुक वहां डेटा साइंटिस्ट थे।
प्रांशुक कांठेड़ ने 15 साल की उम्र में ही श्वेताम्बर जैन मुनि बनने की प्रबल इच्छा थी। इंदौर में रहने वाले प्रांशुक देवास जिले के हाटपिपल्या के मूल निवासी हैं। घर परिवार में माता- पिता और एक छोटा भाई है। हाटपिपल्या में होने जा रहे तीन दिवसीय दीक्षा महोत्सव में प्रांशुक के अलावा प्रियांशु(MBA) निवासी थांदला और पवन कासवा निवासी रतलाम भी दीक्षा लेंगे। देश के अलग-अलग कोने से करीब 53 जैन संत-सतिया आएंगे, जिनके सानिध्य में 26 दिसंबर को दीक्षा का कार्य सम्पन्न होगा।
अमेरिका में सवा करोड़ के पैकेज की नौकरी
प्रांशुक इंदौर के SGSITS कॉलेज से BE करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चले गए। डेढ़ साल पढ़ाई के बाद प्रांशुक ने 3 साल तक डेटा साइंटिस्ट की नौकरी की। जहां उनकी 1.25 करोड़ रुपए सालाना सैलरी थी। इस दौरान भी वह वहां गुरुभगवंतों की किताबें और नेट पर उनके प्रवचन और साहित्य को पढ़ते और अध्ययन करते रहे।
नौकरी से मन भर जाने के बाद प्रांशुक ने परिवार से दीक्षा लेने और जैन संत बनने की इच्छा जाहिर की। माता-पिता ने भी लिखित में अपनी अनुमति गुरुदेव जिनेंद्र मुनि जी को दे दी है। जनवरी 2021 में अमेरिका से आने के बाद वह जैन मुनि के सानिध्य में रहे। प्रांशुक का कहना है कि वे इस संसार के सुख को जब देखते है तो यह सुख उन्हें क्षण भंगुर नजर आता है। वे बताते है कि सुख हमारी तृष्णा को और बढ़ाता है। चिरकाल के सुख के लिए मैं जैन संत बनने जा रहा हूं।
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