(सौरभ कोठारी)
रतलाम,8दिसम्बर(खबरबाबा.काम)। जिले के ग्रामीण अंचल के एक युवक के जुनून और प्रतिभा को देखकर हर कोई आश्चर्यचकित हो जाए। युवक ने अपने सपने को पूरा करने के लिए झोपड़ी में ही शानदार ‘तंबूरा’ रिकॉर्डिंग स्टूडियो बना दिया। इनकी प्रतिभा के राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कलाकार भी कायल हैं। यही नहीं युवक ने यूट्यूब चैनल भी बनाया है, जहां वे अपने ही स्टूडियो में रिकॉर्ड भजनों को प्रसारित करते हैं।
जिस प्रतिभावान कलाकार की हम बात कर रहे हैं ,वह है जिले के शिवगढ़ थाना क्षेत्र अंतर्गत गांव कांगसी निवासी दीपक चरपोटा। जब खबरबाबा.काम की टीम गांव में पहुंची तो कच्ची सड़क वाले रास्ते पर झोपड़ियों के आगे पेड़ों की छावं तले बंधी भैंसे और एक बिल्कुल सामान्य झोपड़ी देखकर हमें विश्वास नहीं था कि अंदर एक शानदार स्टूडियो देखने को मिलेगा। झोपड़ी के अंदर जाते ही हमें दिखा एक शानदार और किसी बड़े महानगर में बने रिकॉर्डिंग स्टूडियो जैसा फुल साउंड फ्रूफ कमरा। कमरे के एक कोने में रखा कंप्यूटर सिस्टम और रिकार्डिंग, एडीटिंग के उपकरण। दूसरी ओर एक तंबूरा, हारमोनियम और कुछ वाद्य यंत्र।
अपनी मेहनत और जुनून से बनाया स्टूडियो
शिवगढ़ के समीप स्थित गांव कांगसी में दीपक ने अपनी मेहनत और लगन से अनोखा ‘तंबूरा’ स्टुडियो बनाया है, जो पूरे रतलाम जिले ही नहीं बल्कि संभवत: प्रदेश का भी अकेला स्टुडियो है जो इतने छोटे गांव में झोपड़ी में बना है। बिना किसी तकनीकी शिक्षा, किसी आर्थिक मदद के केवल स्थानीय कलाकारों और अपने कबीर से प्रेरित निर्गुणी भजनों को मंच देकर जीवित रखने की ललक में ये स्टुडियो बनाया गया है। दीपक ने यू-ट्यूब पर अपना चैनल -दीपक चरपोटा और तंबूरा स्टुडियो भी बनाए हैं, जिसमें वे अपने मंत्रमुग्ध करने वाले भजनों को साझा करते हैं।
ऐसे शुरु हुआ कबीर यात्रा का सफर
दीपक बताते हैं कि वे बोलना सीखे तभी से गांव में गाए जाने वाले निर्गुणी भजन गा रहे हैं। बाल भजन गायक के रूप में प्रसिद्ध हो गए। बचपन से उन्हें पद्मश्री प्रहलाद टिपानिया की आवाज और गूढ़ निर्गुनी भजन आकर्षित करते थे। एक बार गांव वाले टिपानियाजी से भेंट करने देवास गए, तब दीपक 6-7 साल के थे। वो भी साथ हो लिए। भोजन का समय हुआ तो दीपक भी परोसदारी करने लगे। टिपानियाजी ने जैसे ही छोटे बालक दीपक को देखा उन्हें अपनी गोद में बैठा लिया। इसके एक वर्ष बाद टिपानियाजी की भजन संध्या का आयोजन उन्हीं के गांव के पास हुआ। मंच पर टिपानिया जी के पहले दीपक से भी भजन गवाए गए। टिपानियाजी ने सुना तो मुग्ध हो गए और उन्हें शिष्य बना लिया। दीपक ने उनसे भजन गायन, वादन के साथ कबीर के आध्यात्म की शिक्षा प्रारंभ कर दी।
मेहनत से संवारा सपना
गांव में संसाधन सीमित और आर्थिक स्थितियां सतही हैं। दीपक ने पहली बार यू-ट्यूब पर कबीर के भजनों से जुड़े वीडियो देखे तो उनके मन में भी अपने और आसपास के कलाकारों के भजन की वीडियो बनाने का मन हुआ। इसके लिए गरीबों के लिए रिकार्डिंग स्टुडियो जाना, पैसा देना संभव नहीं था। पूरे रतलाम में भी ऐसे मुश्किल से 2-3 स्टुडियो हैं। छोटे से आदिवासी गांव कांगसी में ऐसा स्टुडियो बनाने के बारे में सोचना भी मुश्किल था। न कोई इसकी जानकारी देने वाला था, न पैसा था। जिद थी कलाकारों को मंच देने की। बहुत छोटी उम्र से मजदूरी और ड्राइवरी करते हैं। परिवार को बताया और सालों तक पैसे इकट्ठे किए और स्टुडियो बनाया।
इंटरनेट से सीखी सारी तकनीक
इस पूरे क्षेत्र में कोई भी स्टुडियो या इससे जुड़ी तकनीक के बारे में नहीं जानता। 8वीं पास दीपक ने इंटरनेट से स्टुडियो बनाने की विधि सीखी और अपने झोपड़ी का एक कमरा स्टुडियो रूम के रूप में तैयार किया। साउंड क्वालिटी के लिए धीरे-धीरे इसे कवर किया। एक-एक करके जरूरी संसाधन, कंप्यूटर सिस्टम, सिंथसाईजर, रिकार्डिंग सिस्टम, माइक्स, एक्वलाईजर, मिक्सिंग टूल्स लिए और इंटरनेट से सीखकर इन्हें एसेम्बल करना और चलाना सीखा। करीब 7 सालों की मेहनत के बाद अब उनका स्टुडियो शहरों के बड़े स्टुडियों को भी मात दे रहा है। हालांकि आज भी इससे कोई कमाई नहीं होती बल्कि अपने जेब से ही पैसा लगा रहे हैं।
पद्मश्री टिपानियाजी के साथ किए कई कार्यक्रम
दीपक बचपन से ही भजन गाते थे, लेकिन गायकी अपने गुरु पद्श्री टिपानियाजी से सीखा। उन्हीं की मंडली में रहकर तंबूरा, करताल, हारमोनियम, वोइलिन, बांसुरी, ढ़ोलक और कई साज बजाना भी सीखे। श्री टिपानियाजी के सान्निध्य में उनके साथ मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, हरयाणा, महाराष्ट्र तक में कई कार्यक्रम किए।