रतलाम,20 नवंबर(खबरबाबा.काम)। सबका अपना-अपना आभामंडल होता है। आभामंडल को सकारात्मकता और नकारात्मकता प्रभावित करती है। सकारात्मकता के आभामंडल मे ंप्रवेश करने से प्रसन्नता का जागरण होता है और खून में रोग प्रतिरोधक शक्ति बढती है। नकारात्मकता का प्रभाव इसके विपरीत होता है। आभामंडल को अच्छे विचार, मधुर वाणी, सौम्य व्यवहार और चिंतामुक्ति सकारात्मक बनाते है।
यह बात परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने कही। सोमवार को छोटू भाई की बगीची में प्रवचन के दौरान उन्होंने कहा कि आभा जीव मात्र में होती है और यही जीव को बनाए रखती है। किसी की पहचान के लिए आभामंडल कसौटी होता है। सकारात्मकता रहोगे, तो आभामंडल सकारात्मक रहेगा और नकारात्मक रहे, तो आभामंडल नकारात्मक ही रहेगा। सकारात्मकता के लिए अच्छे विचार, मधुर वाणी, सौम्य व्यवहार और चिंतामुक्ति के गुण आवश्यक है।
आचार्यश्री ने कहा कि जीवन में अच्छे विचार का बहुत महत्व है। केवल धर्म स्थान में ही विचार अच्छे नहीं होना चाहिए, अपितु हर जगह रहना चाहिए। मैत्री भाव से सर्व प्राणी के सुख और शांति का भाव रखना अच्छे विचार का प्रतीक है, इससे आभामंडल सकारात्मक रहता है। अच्छे वचन और भाषा का उपयोग भी सकारात्मकता लाता है। इससे संबंधों में सशक्तता आती है और वे दीर्घजीवी बनते है। सौम्य याने अच्छे व्यवहार से जीवन में रस पैदा होता है, जो जीवन को सरल बनाता है। व्यक्ति का सौम्य व्यवहार ही परिवार में प्यार पैदा करता है। सौम्य व्यवहार ही समस्याओं का असली समाधान है।
आचार्यश्री ने कहा कि चिंता का वायरस नकारात्मकता लाता है। संसार में चिंता रहेगी, लेकिन हमे सावधानी रखना है कि चिंता कभी ज्वाला नहीं बने और चिंतन के रूप में ज्योति बन जाए। ज्वाला जलाती है और ज्योति उजाला करती है। इसलिए सबका लक्ष्य ज्वाला बनने का नहीं, अपितु ज्योति बनने का होना चाहिए। चिंता की कभी हाजरी मत लो और जो हुआ, अच्छा हुआ, जो होगा, वह अच्छा होगा के भाव से आगे बढो। इससे सदैव सुख और आनंद रहेगा। अच्छे विचार, मधुर वाणी, सौम्य व्यवहार और चिंतामुक्ति इन चार बातों का अनुसरण करने वाले का आभामंडल कभी नकारात्मक नहीं होता है।
आरंभ में उपाध्याय प्रवर श्री जितेशमुनिजी मसा ने कहा कि प्रेम और शांति की पगडंडी को जिसने अपनाया है, उसने सबकुछ पाया है। संसार समस्याओं का घर है और संयम समाधान का घर है। संसार में रहते हुए भी संयमपूर्वक रहे, तो आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा। प्रवचन में बडी संख्या में श्रावक-श्राविकागण उपस्थित रहे।