रतलाम, 26नवम्बर(खबरबाबा.काम)/ रतलाम जिला इतने अजूबों से भरा है, जिन्हें जानकर देश-विदेश के जानकार दांतो तले उंगली दबा लेते हैं। जिले के सबसे ऊंचे स्थल ग्राम बेरछा की पहाड़ी पर सदियों प्राचीन अम्बे माता मंदिर के समीप ऐसी ही अनोखी चट्टान है। इस चट्टान पर चोट करते ही घंटियों की ध्वनी सुनाई देती है। खबरबाबा. काम की टीम जब यहां पहुंची तो स्तब्ध रह गई। स्थानीय लोग इसे माता का चमत्कार मानते हैं और दुर्गम रास्ते के बावजूद यहां नवरात्रि और हर रविवार को भक्तों की भीड़ लगी रहती है। जितना हैरत भरा आस्था का कारण है उतना ही इसके वैज्ञानिक कारण भी है। वैज्ञानिकों के अनुसार पूरे विश्व में ऐसी चट्टानें गिनी चुनी हैं, और ये 100-200 नहीं बल्कि हजारों सालों पुरानी है।
आस्था, हैरत और रोमांच से भरा यह स्थान जिला मुख्यालय से 24 किमी दूर ग्राम बेरछा में स्थित है। बेरछा रतलाम जिले का सबसे ऊंचा स्थान और यह चट्टान सबसे ऊंची चोटी है जो करीब 495 मीटर है। यहां पहाड़ी में अम्बे माता का मंदिर स्थित हैं जिसे भक्त करीब डेढ हजार साल पुराना बताते हैं। मां अम्बे गर्भ गृह में विराजित हैं और पुराने और छोटे से मंदिर तक पहुंचने के लिए रास्ता दुर्गम है। पहाड़ी पर जंगल के बीच मंदिर पर फिर भी नवरात्रि और हर रविवार को भक्तों की भीड़ लगती है। भक्तों की मान्यता है कि यहां मन्नते पूरी होती हैं, हालांकि उनकी मांग है कि शासन को यहां आने-जाने के लिए रास्ते का निर्माण करवाना चाहिए।
मंदिर से 700 मीटर दुर्गम स्थान पर है चमत्कारी चट्टान
अम्बे माता मंदिर से पहाड़ी के ऊपर ही करीब 700 मीटर दूर जंगल के बीच बहुत ही दुर्गम रास्ता है। तेड़े-मेड़े और खतरनाक रास्ते से होते हुए चट्टान तक पंहुचा जा सकता है। इस चट्टान के चारों ओर हजारों दूसरी चट्टानें हैं, लेकिन उनमें से सामान्य आवाज आती है जो किसी भी पत्थरों से आती है। परंतु इस चट्टान पर अन्य पत्थर से चोट करते ही घंटियों की टनटन जैसी ध्वनी निकलने लगती है। इस दौरान खबरबाबा. काम टीम के साथ राकेश जाट, राधेश्याम धनगर, अजय जाट, मंदिर के पुजारी गौरवगिरी गोस्वामी आदि भी पहुंचे और उन्होंने बताया कि यह आवाज वे अपनी 5-7 पीढियों से भी ज्यादा से सुन रहे हैं। संभवत: इससे भी पुरानी हो, परंतु तब यहां घना जंगल हुआ करता था। अब भी इस चट्टान तक बहुत कम लोग आए हैं और कम ही लोग इसके बारे में जानते हैं। स्थानीय जानकार की मदद के बिना उक्त चट्टान तक पहुंचना बहुत मुश्किल है।
बहुत विशिष्ट और खास है यें चट्टान
भुगौलविद् भोपाल की डॉ. वंदना पाठक बताती है कि रिंगिग रॉक जिन्हें सोनोरस रॉक या लीथोफोन कहा जाता है। ये चट्टानें पूरे विश्व में बेहद कम जगहों पर हैं और दुनियाभर के वैज्ञानिक इनके गुणों के अध्य्यन में लगे हुए हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह चट्टानें कम से कम दो हजार और कुछ तो करीब 5-7 हजार साल पुरानी हैं। कुछ जुरासिक पीरियड कुछ उसके बाद की है। यह चट्टानें उस दौरान ज्वालामुखी से निकले लावे के ठंडे होने के कारण बनी है, लेकिन इनके अंदर आज ही कणों (एटम) का विशेष प्रयोजन पाया जाता है। रतलाम के पास ऐसी चट्टान मिलने पर इसका अध्ययन किया जाए तो कई ऐतिहासिक तथ्य सामने आ सकते हैं।
कणों का होना चाहिए अध्ययन
भौतिकशास्त्र विद गजेंद्र सिंह राठौर बताते हैं कि वास्तव में जब एक पत्थर से दूसरे पत्थर को या किसी भी घँटी को बजाया जाता है, तो उसमें उर्जा का स्थानांतरण किया जा रहा है। हमारे हाथों की उर्जा उसमें पहुंच रही है। यह उंजा पत्थर या चट्टान के अंदर के कणों से होती हुई कंपन पैदा करती है जिससे ध्वनी तरंगे जन्म लेती हैं। मेटल यानी धातु और पत्थर में कणों की आवृत्ति अलग-अलग होती है और उसमें उर्जा का स्थानांतरण अलग-अलग तरीके से होता है और अलग-अलग आवाज निकलती है। जिस चट्टान से धातु जैसी ध्वनी निकल रही है वह निश्चित तौर पर सामान्य पत्थर नहीं बल्कि वैज्ञानिक शोध का केंद्र माना जा सकता है। इसके माध्यमों का अध्ययन कर ही पूरी बात को पता लगाया जा सकता है।
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