रतलाम,14फरवरी। कोई भी काम बड़ा नहीं होता, बस मन को राजी करना पड़ता है। हमारा मन यदि ठान ले,तो हर काम संभव है। मन के हारे हार है और मन के जीते जीत है। इसलिए जिनेन्द्र बनने का विचार मन मे लाओ। मन यदि चाहेगा,तो जिनेन्द्र बनना कठिन नही लगेगा।
यह बात आचार्य पुष्पदंत सागरजी महाराज के यशस्वी शिष्य, राष्ट्रसंत आचार्य श्री 108 श्री पुलक सागर जी महाराज ने कही। गोशाला रोड़ स्थित आचार्यश्री सम्मति सागर त्यागी भवन (साठ घर का नोहरा) में गुरुवार की धर्मसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि लड़कर जो हारता है, उसे ही वीर कहा जाता है। बिना लड़े जो हार जाए,वह कायर कहलाता है। जिनेन्द्र भगवान द्वारा बताए गए मार्ग अनुसार रात्रि भोजन का त्याग और पानी छानकर पीने का प्रयास करके देखो। इससे कोई समस्या नही आएगी। यदि इतना भी नही कर सकते,तो जिनेन्द्र भगवान बनना तो संभव ही नहीं होगा।
आचार्यश्री ने कहा कि मोदी और अम्बानी ने सिर्फ भगवान के दिए हुए शब्दों का उपयोग किया है। मोदीजी ने नमो शब्द लिया,जो हमारे मंत्र में प्रथम आता है और अम्बानी ने जियो शब्द लिया है, जो भगवान के संदेश जियो और जीने दो में निहित है। यदि सिर्फ शब्दो की मदद से इतना सफलता उन्हें मिली है,तो सोचो भगवान की पूरी शरण मे जाने वाले को कितना लाभ हो सकता है। प्रत्येक धर्म का अपना-अपना महत्व है। हर मनुष्य की अपने धर्म के प्रति अकाट्य श्रद्धा होनी चाहिए। किसी को किसी की धर्म पद्धति से एतराज नही होना चाहिए। सभी पद्धतियों मे लक्ष्य सिर्फ भगवान को पाना और उनके बताए मार्ग पर चलने का होना चाहिए।
आचार्यश्री ने पंथवाद में नही पड़ने का आव्हान करते हुए कहा कि पंथवाद के स कारण ही आज धर्म की सबसे ज्यादा दुर्गति हो रही है। उन्होंने कहा कि जिसने इंद्रियों को जीत लिया,वही जिनेन्द्र है। इस प्रकार संसार मे दो प्रकार के प्राणी है। एक वे जो हारते है और दूसरे वे जो जीतते है। हम जिनेन्द्र नही बन पा रहे,तो इसका मतलब हम हारे हुए है। जीतने के लिए हमे भगवान द्वारा बताये गए मार्ग पर चलना होगा।
धर्मसभा के आरंभ में मंगलाचरण सरोज जैन ने किया। दीप प्रज्वलन शांतिलाल गोधा बाबूजी, महेंद्र पणोत, प्रकाश अग्रवाल ने किया। पादपक्षालन महेश जैन ,महेंद्र सेठिया, कमलेश पापरीवाल ने तथा शारदा देवी जैन भुजियावाला, उषा पणोत, कुसुम पापरीवाल, रेखा बड़जात्या ने शास्त्र भेंट किया।धर्म सभा का संचालन अभय जैन द्वारा किया गया।